Biography of Keshub Mahindra : महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह की कंपनियों के पूर्व अध्यक्ष केशब महिंद्रा का 12 अप्रैल 2023 को मुंबई में 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने 1963 से 2012 तक समूह के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
केशुब अगस्त 2012 में सेवानिवृत्त हुए जिसके बाद उनके भतीजे आनंद महिंद्रा ने कंपनी की कमान संभाली। केशब महिंद्रा 1948 में कंपनी के बोर्ड में शामिल हुए और 1963 में अध्यक्ष चुने गए।
उनकी अध्यक्षता के 48 वर्षों के दौरान, महिंद्रा समूह ऑटोमोबाइल के एक निर्माता से बढ़कर व्यवसायों की एक श्रृंखला में काम करने वाली कंपनियों का एक संघ बन गया, जिसमें ऑटोमोबाइल, ट्रैक्टर, ऑटो घटक, आईटी, रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाएं और आतिथ्य शामिल हैं।
केशब महिंद्रा का जीवन परिचय– Family
दोस्तों , एक युवा, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ब्राजील एडवेंचर करने की तयारी में था , तभी उसके पिता ने उसे समन जारी करते हुए तुरंत भारत वापस आकर कंपनी ज्वॉइन करने के लिए कहा। वह लड़का तुरंत वापस लौट जाता है और उसके बाद जो कुछ भी होता है, वो एक इतिहास है। वो युवा कोई और नहीं, बल्कि केशब महिंद्रा थे, जिनके पिता केसी महिंद्रा ने भाई जेसी महिंद्रा के साथ मिलकर Mahindra & Mohammed की स्थापना की थी, जो बाद में Mahindra & Mahindra बन गई.
केशब महिंद्रा का कितनी उम्र में निधन हुआ ?
केशब महिंद्रा गत 22 अक्टूबर 2022 को 99 साल के हो गए थे। उनका जन्म 9 अक्टूबर, 1923 को शिमला में हुआ था। उन्होंने अपने पिता की कंपनी Mahindra & Mahindra 1947 में ज्वॉइन की थी और वर्ष 1963 में कंपनी के चेयरमैन बने। वे कंपनी से वर्ष 2012 में रिटायर हुए, लेकिन वे मरते डैम तक कंपनी के चेयरमैन रेमेरिटस (सेवामुक्त) रहे हैं.
99 साल की उम्र में भी वे काफी एक्टिव थे और एक मेंटर की भूमिका निभा रहे थे। आज Mahindra & Mahindra जिन उंचाइयों पर है, उसका पूरा श्रेय केशब महिंद्रा को जाता है, जिन्होंने अपनी कौशल क्षमता के साथ कंपनी को सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर किया। दोस्तों , Mahindra & Mahindra की सक्सेस स्टोरी केशब महिंद्रा के योगदान के बिना पूरी नहीं हो सकती।
आनंद महिंद्रा भी करते हैं खूब तारीफ
कंपनी के वर्तमान चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने भी उनकी तारीफ में कहा था, “केशब महिंद्रा ने विभिन्न व्यवसायों के निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में भी अहम् भूमिका निभाई थी। वे समावेशी विकास और समतामूलक समाज के प्रबल समर्थक रहे थे।
वे शिक्षा, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने के साथ महिंद्रा समूह के सीएसआर कार्यक्रमों में गहरी दिलचस्पी लेते थे। वे के.सी. महिंद्रा एजुकेशन ट्रस्ट के साथ आजीवन भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे , जो उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है. वे दिल के बहुत अच्छे इंसान थे ,ये बात उनके आस -पास रहने वाले सभी जानते हैं.”
मारुति सुजुकी के चेयरमैन ने भी देखी है उनकी सादगी
मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने भी उनकी सादगी करीब से देखी है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था , “बात 1986 की है, जब केशब महिंद्रा की बेटी लीना की शादी संजय लबरू से हो रही थी.
मैं संजय के मेहमान के तौर पर शादी में शामिल हुआ था. उनकी सादगी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि शादी के सभी समारोह केशब के घर में ही हुए थे. उन्हें दिखावा पसंद नहीं था.
शादी में आने वाले मेहमानों की लिस्ट भी बहुत छोटी थी. सब कुछ बहुत ही सामान्य तरीके से संपन्न हुआ था. मैंने उसी वक्त यह महसूस किया था कि वे दूसरे अमीर लोगों से बिल्कुल अलग थे. उनकी इसी सादगी के कारण उनकी कंपनी आज बुलंदियों पर है.”
महिंद्रा अपने गार्ड को भी समझते थे सहकर्मी
केशब महिंद्रा इतने ईमानदार थे कि अपने परिवार के लिए कंपनी की किसी भी संपत्ति का उपयोग नहीं करते थे. उन्होंने यह तय किया था कि परिवार के लाभ के लिए कंपनी की किसी भी संपत्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
स्वभाव से इतने सरल कि कभी अपने कर्मचारियों को खुद से छोटा नहीं समझा. वे हमेशा कर्मचारियों को सहकर्मियों जैसा ट्रीट करते थे, चाहे वह कंपनी का कोई गार्ड ही क्यों न हो. उनके सरल स्वभाव के कारण ही मजदूर यूनियनों ने भी उनपर पूरा भरोसा किया.
केशब को 1947 में रक्षा मंत्री ने बुलाया था मिलने
एक इंटरव्यू में खुद केशब महिंद्रा ने वर्ष 1947 की एक घटना बताई थी . उन्होंने बताया था , “बात 1947 की है, जब मुझे रक्षा मंत्री से मिलने के लिए बुलाया गया. उस मीटिंग में कुछ और लोग थे. जब मीटिंग शुरू हुई तो उन्होंने हमें विश्वास में लिया और कहा कि हमें अपने टैंकों के लिए स्पेयर पार्ट्स प्राप्त करने में बहुत समस्या हो रही है.
अंग्रेज और अन्य सभी खेल खेल रहे थे और हम पुर्जे का आयात जारी नहीं रख सकते थे, इसलिए हमें इसके बारे में कुछ करना था. उन्होंने कहा कि सरकार ने कुछ कड़े फैसले लिए हैं और हमारी जरूरतों के लिए अपना ऑटोमोटिव उद्योग विकसित करने का फैसला किया है. फिर उन्होंने हमसे पूछा, “आप लोगों को क्या लगता है?”
मैंने कहा- हम ऑटो उद्योग के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते. मैंने अपने बगल में बैठे पादरी, कर्नल मेनन, जो नीति निर्माताओं में से एक बने, से पूछा, “क्या आप उद्योग के बारे में कुछ जानते हैं ?” और उन्होंने भी कहा- एक भी चीज नहीं. लेकिन असल मायने में बुलंदियों पर पहुंचने वाले भारतीय ऑटो उद्योग की शुरुआत की नींव वहीं से पड़ी थी .”
केशब महिंद्रा बहुत बड़े राष्ट्रभक्त भी थे
केशब महिंद्रा कितने बड़े राष्ट्र भक्त थे, इस बात का अंदाजा आप उनके ही इस घटना से लगा सकते हैं. उन्होंने कहा, “सरकार ने हमें छोटी मात्रा में सब कुछ बनाने के लिए प्रेरित किया. जरा सोचिए, एक साल में 2,000 जीपों के लिए हमें इंजन, ट्रांसमिशन, एक्सल, स्टैम्पिंग, बॉडी, हर चीज बनानी थी.
उन दिनों कोई सप्लायर इंडस्ट्री भी नहीं थी, हमें सब कुछ घर में ही करना पड़ता था. यह बिल्कुल आसान नहीं था, लेकिन, उस वक्त ये एक राष्ट्रीय आवश्यकता थी जिसे मैं समझता हूं कि हम सभी ने इसे पहचाना.”
महिंद्रा की जीप के जनक थे केशब महिंद्रा
जो आज आप महिंद्रा की जीप देखते हैं, उसके पीछे भी केशब महिंद्रा का ही हाथ है. जब उनके पिता कैलाश चंद्र महिंद्रा युद्ध के दौरान वाशिंगटन में थे, तब वे जीप के आविष्कारक बार्नी रोस से मिले. बार्नी ने उनसे जीप के लिए एजेंसी लेने के लिए कहा, लेकिन केशब के पिता ने कहा कि उन्हें इस वाहन के बारे में कुछ भी पता नहीं है.
हालांकि बार्नी ने उनके पिता को भरोसा दिलाया कि विकासशील देशों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह सबसे आदर्श वाहन है. और फिर महिंद्रा एंड महिंद्रा ने जीप को भारत की जन-जन की सवारी बनाने की ठान ली. इस तरह से भारत में जीप के सफर की शुरुआत हुई.
केशब महिंद्रा ने किया कई चुनौतियों का सामना
शुरुआती समय में कंपनी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. भारत सरकार ने उस वक्त कीमत तय कर रखी थी कि कोई भी फिक्स कीमत से ज्यादा में वाहन नहीं बेच सकता. कच्चे माल की कीमत बढ़ने के बाद लागत बढ़ जाती थी, पर मजबूरी वाहन की कीमत नहीं बढ़ सकती थी.
उस पल को याद करते हुए केशब महिंद्रा ने कहा था, “हमने सरकार के पास कीमत बढ़ाने के लिए अप्लीकेशन भेजा था, लेकिन हमें ऐसा करने की अनुमति 9 महीने के बाद मिली. अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि कंपनी ने किन चुनौतियों में काम किया गया होगा. उस वक्त तो वर्क फोर्स की भी बहुत कमी रहती थी.”
1,0768 करोड़ के मालिक थे केशब महिंद्रा- Networth of Keshub Mahindra
बहरहाल, मजबूत इरादे और बुलंद हौसले के कारण केशब महिंद्रा ने हर चुनौती का डट कर सामना किया और उस पार कर लिया और Mahindra & Mahindra की दुनिया में एक पहचान बनाई. फोर्ब्स के अनुसार, एक साल पहले तक केशब महिंद्रा की नेटवर्थ 1.3 बिलियन डॉलर (लगभग 1,0768 करोड़) थी।
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जेसी और केसी महिंद्रा कौन है ?
जगदीश चंद्र महिंद्रा को आमतौर पर जेसी महिंद्रा (सी 1892-1951) कहा जाता है, वह एक भारतीय उद्योगपति और 1945 में कैलाश चंद्र महिंद्रा और मलिक गुलाम मोहम्मद के साथ महिंद्रा एंड महिंद्रा के सह-संस्थापक थे।
विश्व का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता कौन है ?
महिंद्रा ट्रैक्टर को दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर कंपनी (मात्रा के हिसाब से) होने का गौरव प्राप्त है और इसे तीन ब्रांडों के तहत 6 महाद्वीपों में 50 से अधिक देशों में बेचा जाता है।
महिंद्रा का पुराना नाम क्या था ?
इसकी स्थापना 1945 में ‘महिंद्रा एंड मुहम्मद‘ नाम से हुई थी जो बाद में बदलकर ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ कर दिया गया। महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड, महिंद्रा समूह का एक भाग है।
महिंद्रा कंपनी की सबसे ज्यादा बिकने वाली कार कौन सी है
स्कॉर्पियो सितंबर महीने में महिंद्रा की सबसे ज्यादा बिकने वाली गाड़ी रही है. अब यह गाड़ी दो मॉडल्स- Mahindra Scorpio-N और Scorpio Classic में आती है. सितंबर 2022 में, महिंद्रा ने स्कॉर्पियो की 9,536 यूनिट्स की बिक्री की है. यह सितंबर 2021 में बिकी 2,588 यूनिट्स के मुकाबले 268 प्रतिशत ज्यादा है.
टेक महिंद्रा को किसने खरीदा ?
दिसंबर 2010 में, ब्रिटिश टेलीकॉम ने टेक महिंद्रा में अपनी 5.5 प्रतिशत हिस्सेदारी महिंद्रा एंड महिंद्रा को रुपये में बेच दी। 451 करोड़।
भारत में नंबर 1 ट्रैक्टर कौन सा है ?
महिंद्रा 2022 में भारत में शीर्ष 10 ट्रैक्टर कंपनी है । महिंद्रा युवो 575 डीआई , महिंद्रा युवो 415 डीआई और महिंद्रा जीवो 225DI महिंद्रा में सबसे लोकप्रिय ट्रैक्टर मॉडल हैं। महिंद्रा ट्रैक्टर की कीमत रुपये के बीच है। 2.50 लाख* से रु.
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