स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda ) kaun the : दोस्तों , आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) जी आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी को उनके बचपन में सन्यांसी बनने से नहीं रोकते तो आज देश का प्रधानमंत्री कोई और व्यक्ति होता। लोगों का मानना है कि महाराज दिव्यदृष्टि रखते थे जिससे वो भक्तों के भविष्य को देख लेते थे और उसके अनुसार ही उनको guide करते थे। जनवरी 2020 में भी स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मोदी जी बंगाल में बेलूर मठ गए थे और उन्होंने वहां एक गुफा में ध्यान लगाया था.
बेलूर मठ और नरेन्द्र मोदी के संबंधों की शुरुआत दशकों पुरानी है। जब भी मोदी कोलकाता आते हैं बेलूर मठ जरूर जाते हैं। इससे पहले वे वर्ष 2015 में बेलूर मठ गए थे। उस समय उनके गुरु स्वामी आत्मास्थानानंद जीवित थे। आत्मास्थानानंद के बारे में स्वयं मोदी स्वीकार करते हैं कि वे उनके व्यक्तित्व को गढऩे, उन्हें राजनीति के जरिए जन सेवा करने का मंत्र देने वाले थे।
तुम गुरु पर ध्यान दो, गुरु तुम्हें ज्ञान देगा,
तुम गुरु को सम्मान दो, गुरु ऊंची उड़ान देगा।
गुरु पर शायरी
कहा तो यह भी जाता है कि साठ के दशक में हावड़ा के बेलूर मठ आए नरेन्द्र मोदी रामकृष्ण मिशन के कार्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संन्यासी बनने की ठान ली। इस दौरान उनके गुरु आत्मास्थानानंद ने उन्हें जन सेवा ही प्रभु सेवा का मंत्र दिया। जिसके बाद मोदी राजनीति की राह में आगे बढ़े।
मोदी को संन्यासी बनने से किस महाराज ने रोका/ स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda)
धार्मिक विचारों वाले बालक नरेंदर मोदी एक बार किशोरावस्था में संन्यासी बनने बेलूरमठ आए थे लेकिन उनके गुरु स्वामी आत्मस्थानंद Swami Atmasthananda महाराज ने यह कहते हुए उनके अनुरोध को खारिज कर दिया था कि उनकी कहीं ओर जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 जुलाई 2022 को स्वामी आत्मस्थानंद के जन्म शताब्दी समारोह पर उनके साथ बिताए समय को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री ने स्वामी आत्मस्थानंद के मिशन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज के एक फोटो-जीवनी और वृत्तचित्र का विमोचन किया।
स्वामी आत्मस्थानंद Swami Atmasthananda कौन थे ?
स्वामी आत्मस्थानंद (21 मई 1919 – 18 जून 2017) एक भारतीय हिंदू भिक्षु थे, जो रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के पंद्रहवें अध्यक्ष थे। उनको हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी का गुरु कहा जाता है। प्रधानमंत्री उनका आज भी पूरा सम्मान करते हैं. स्वामी जी के निधन 18 जून 2017 को को निधन हुआ था .स्वामी आत्मास्थानंद 99 साल के थे। उन्होंने कोलकाता स्थित रामकृष्ण मिशन सेवा प्रतिष्ठान में आखिरी सांस ली।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री ने स्वयं टवीट करके कहा था कि – “स्वामी आत्मास्थानंद जी के पास बहुत नॉलेज था। उनके आदर्श और व्यक्तित्व को आगे की पीढ़ियां याद रखेंगी। स्वामी जी का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर नुकसान है। मैंने अपनी जिंदगी का अहम वक्त उनके साथ बिताया था।”
स्वामी जी ने मोदी से कहा था- तुम संन्यासी नहीं बनोगे, बल्कि लोगों के लिए काम करो। इसके बाद मोदी अपने गुरु आत्मस्तनंद के साथ राजकोट लौट आए और आरएसएस के मेंबर बन गए। इसके बाद मोदी पॉलिटिक्स में आए।
स्वामी आत्मस्थानंद Swami Atmasthananda का जीवन परिचय / शिक्षा ,जन्म ,मृत्यु
स्वामी आत्मस्थानंद का जन्म बुद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन 21 मई 1919 को बंगाल प्रेसीडेंसी के दिनाजपुर नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने जनवरी 1938 में रामकृष्ण आदेश के तत्कालीन चौथे अध्यक्ष, स्वामी विज्ञानानंद (रामकृष्ण के प्रत्यक्ष मठवासी शिष्य) से आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त की थी। स्वामी आत्मस्थानंद 3 जनवरी 1941 को 22 वर्ष की आयु में बंगाल के बेलूर मठ में रामकृष्ण ऑर्डर में शामिल हुए।
इसके बाद वर्ष 1945 में उस ऑर्डर के 6 वें तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी विराजानंद (शारदा देवी के एक दीक्षित शिष्य) ने उन्हें ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा दी। उन्होंने सन्यांसी धर्म का बखूबी ढंग से निभाया और वर्ष 1949 में स्वामी आत्मस्थानंद पुरी के नाम के साथ प्रतिज्ञा की।
Swami Atmasthananda का धार्मिक जीवन/ धार्मिक यात्रा
बेलूर मठ और देवघर विद्यापीठ की शाखाओं में कुछ महीने सेवा की। बाद में लगभग 3 वर्षों तक मायावती अद्वैत आश्रम में शाखाओं की सेवा करने के पश्चात् स्वामी स्थानानन्द को वर्ष 1944 में मठ के तत्कालीन छठे प्रेजिडेंट स्वामी विरजानंद की सेवा करने का अवसर प्रदान किया गया। उन्होंने हिमालय में श्यामला ताल के एकांत में स्वामी विरजानन्द के साथ कई साल बिताए।
वे 30 मई 1951 तक बेलूरमठ में भी रहे। वर्ष 1952 में स्वामी आत्मस्थानंद को रांची टीबी सेनेटोरियम शाखा में सहायक सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 6 वर्षों (1952- 1958) से अधिक समय तक विभिन्न सेवाओं का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत की। फिर उनकी लग्न व मेहनत को देखते हुए उन्हें 1958 में बर्मा देश के रंगून (यांगून) सेवाश्रम में सचिव के पद पर लगाकर भेज दिया गया।
स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज की जनसेवा का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने सेवाश्रम अस्पताल विकसित किया ताकि गरीब लोगों का सस्ते में इलाज हो सके। विशेष बात यही है कि उनकी ईमानदारी व् सेवा भावना से यह अस्पताल जल्द ही उस समय बर्मा (म्यांमार) का सबसे अच्छा अस्पताल बन गया।
कुछ लोगों को निश्वार्थ सेवा भी नहीं भाती , ऐसा ही कुछ बर्मा में स्वामी जे के साथ हुआ। वहां के सैन्य शासकों ने रंगून सेवाश्रम पर अधिकार कर लिया। इसके बाद स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज वर्ष 1965 में भारत लौट आए। उनकी सेवा भावना को देखते हुए उन्हें मार्च 1966 में राजकोट शाखा के प्रमुख के रूप में तैनात किया गया था।
आपको शायद पता होगा कि राजकोट आश्रम में स्वामी रामकृष्ण का मंदिर उनकी पहल पर बनाया गया था।
स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज ने किन – किन संस्थाओ में सेवाएं दी
स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज बहुत ही सेवा भावना व् निश्वार्थ भाव से काम करने वाले शख्श थे, इसीलिए उनको कई सस्थाओं ने अहम् जिम्मेवारियां दी। स्वामी आत्मस्थानंद को रामकृष्ण मठ का वर्ष 1973 में ट्रस्टी और रामकृष्ण मिशन के शासी निकाय के सदस्य के रूप में चुना गया था।
वर्ष 1975 में उन्हें दोनों संगठनों का सहायक सचिव नियुक्त किया गया था। यही नहीं उन्हें मठ और मिशन के राहत कार्यों का सचिव भी नियुक्त किया गया था। स्वामी जी की मेहनत ने यहाँ भी रंग दिखाया और उनके नेतृत्व में मठ और मिशन ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास अभियान चलाया।
स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) महाराज वर्ष 1992 में मठ और मिशन के महासचिव बने और वर्ष 1997 तक लगातार उस पद पर तब तक बने रहे जब तक वे 22 मई 1997 को ऑर्डर के उपाध्यक्ष बने। इसके बाद मठ और मिशन के उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर यात्रा की और ऑर्डर की कई शाखाओं और कुछ असंबद्ध केंद्रों का दौरा किया।
वर्ष 1998 में उन्होंने अमेरिका, कनाडा, जापान और सिंगापुर के विभिन्न स्थानों का दौरा किया। वह अलग-अलग समय पर मलेशिया, फिजी, श्रीलंका और बांग्लादेश भी गए। उन सभी स्थानों पर स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) ने रामकृष्ण, शारदा देवी, विवेकानंद और वेदांत का संदेश फैलाया और कई साधकों को आध्यात्मिक दीक्षा (मंत्र दीक्षा) भी दी।
स्वामी आत्मस्थानंद को उनकी ईमानदारी एवं सेवा भाव को देखकर 3 दिसंबर 2007 को रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के 15वें अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
स्वामी आत्मस्थानंद के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा ?
स्वामी आत्मस्थानानन्द जी के जन्म शताब्दी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा ?
स्वामी आत्मस्थानानन्द जी के जन्म शताब्दी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा ? आज हर आदमी यह जानने को उत्सुक है , हम आपको बता दें कि मोदी जी ने सम्बोधन में कहा कि पूज्य संतों के मार्गदर्शन में स्वामी आत्मस्थानानन्द जी के जन्म शताब्दी कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। ये आयोजन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी कई भावनाओं और स्मृतियों से भरा हुआ है, कई बातों को अपने आप में समेटे हुये है।
स्वामी जी ने शतायु जीवन के काफी करीब ही अपना शरीर त्यागा था। मुझे सदैव उनका आशीर्वाद मिला, उनके सानिध्य का अवसर मिलता रहा। ये मेरा सौभाग्य है कि आखिरी पल तक मेरा उनसे संपर्क बना रहा। एक बालक पर जैसे स्नेह बरसाया जाता है वो वैसे ही मुझ पर स्नेह बरसाते रहे। आखिरी पल तक उनका मुझ पर आशीर्वाद बना रहा। और मैं ये अनुभव करता हूँ कि स्वामी जी महाराज अपने चेतन स्वरूप में आज भी हमें अपने आशीर्वाद दे रहे हैं।
मुझे खुशी है कि उनके जीवन और मिशन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आज दो स्मृति संस्करण, चित्र-जीवनी और डॉक्यूमेंट्री भी रिलीज़ हो रही है। मैं इस कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी स्मरणानन्द जी महाराज जी का ह्रदय से हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।
स्वामी आत्मस्थानंद (Swami Atmasthananda) को दीक्षा किससे मिली ?
स्वामी आत्मस्थानानन्द जी को श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य, पूज्य स्वामी विजनानन्द जी से दीक्षा मिली थी। मोदी जी ने कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे संत का वो जाग्रत बोध, वो आध्यात्मिक ऊर्जा उनमें स्पष्ट झलकती थी। आप सभी भली-भांति जानते हैं कि हमारे देश में सन्यास की कितनी महान परंपरा रही है। संन्यास के भी कई रूप रहे हैं। वानप्रस्थ आश्रम भी सन्यास की दिशा में एक कदम माना गया है। संन्यास का अर्थ ही है – स्वयं से ऊपर उठकर समष्ठि के लिए कार्य करना, समष्ठि के लिए जीना।
स्व का विस्तार समष्ठि तक। सन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना, जीव में शिव को देखना यही तो सर्वोपरि है। इस महान संत परंपरा को, सन्यस्थ परंपरा को स्वामी विवेकानंद जी ने आधुनिक रूप में ढाला। स्वामी आत्मस्थानानन्द जी ने सन्यास के इस स्वरूप को जीवन में जिया, और चरितार्थ किया। उनके निर्देशन में बेलूर मठ और श्री रामकृष्ण मिशन ने भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में भी राहत और बचाव के अद्भुत अभियान चलाए। उन्होंने निरंतर ग्रामीण क्षेत्रों में जन कल्याण के लिए काम किया, इसके लिए संस्थान तैयार किए।
आज ये संस्थान गरीबों को रोजगार और जीवन यापन में लोगों की मदद कर रहे हैं। स्वामी जी गरीबों की सेवा को, ज्ञान के प्रचार प्रसार को, इससे जुड़े कामों को पूजा समझते थे। इसके लिए मिशन मोड में काम करना, नई संस्थाओं का निर्माण करना, संस्थानों को मजबूत करना, उनके लिए ये रामकृष्ण मिशन के आदर्श थे।
जैसे हमारे यहाँ कहते हैं कि, जहां भी ईश्वरीय भाव है वहीं तीर्थ है। ऐसे ही, जहां भी ऐसे संत हैं, वहीं मानवता, सेवा यह सारी बातें केंद्र में रहते हैं। स्वामी जी ने अपने सन्यास जीवन से ये सिद्ध करके दिखाया। रामकृष्ण मिशन की इसी परंपरा को स्वामी आत्मस्थानानन्द जी ने अपने पूरे जीवन आगे बढ़ाया। उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना जीवन खपाया, अनेक काम किए, और जहां भी वो रहे, वहाँ पूरी तरह रच बस गए।
गुजरात में रहकर वो इतनी अच्छी गुजराती बोलते थे। और मेरा तो सौभाग्य रहा कि जीवन के अंत काल में भी जब उनसे बात होती थी तो गुजराती में होती थी। मुझे भी उनकी गुजराती सुनना बहुत अच्छा लगता था। और मैं आज याद करना चाहता हूं कि जब कच्छ में भूकंप आया था तो एक पल भी उन्होंने नहीं लगाया और उसी समय, तब तो मैं राजनीति में किसी पद पर नहीं था, एक कार्यकर्ता के रूप में काम करता था। उस समय उन्होंने मेरे साथ सारी परिस्तिथि की चिंता, बात की, कि रामकृष्ण मिशन कच्छ में क्या काम कर सकता है।
पूरे विस्तार से, और पूरे समय उनके मार्गदर्शन में उस समय कच्छ में भूकंप पीड़ितों को राहत देने के लिए बहुत सारे काम जाग्रुत हुए। इसीलिए, रामकृष्ण मिशन के संतों को देश में राष्ट्रीय एकता के संवाहकों, इस रूप में हर कोई जानता है। और, जब वो विदेश जाते हैं, तो वहाँ वो भारतीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
रामकृष्ण मिशन की ये जागृत परंपरा रामकृष्ण परमहंस जैसी दैवीय विभूति की साधना से प्रकट हुई है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, एक ऐसे संत थे जिन्होंने माँ काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था, जिन्होंने माँ काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था।
Best Joke of the day :
टीचर- बताओ अगर कोई ग्रह पृथ्वी से टकरा जाएगा तो क्या होगा?
hahahahahahaaaaaa
सीटू- टन्न की आवाज आएगी.
टीचर- क्यों.
सीटू- क्योंकि ये दुनिया…ये दुनिया पीतल दी.
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Swami Sathananand ji ka janam kab hua ?
Swami Sthananand ji ka janam 21 May 1919 ko hua tha.
Swami Sathananand ji ki mrityu kab hui thi ?
Swami Sathananand ji ki mrityu 18 June 2017 ko hui thi.
नोट : दोस्तों , दिनभर की भागदौड़ में आप जैसे मेहनती आदमी काम करके थक जाते हैं और कई बार बोर भी हो जाते होंगे। ऐसे में आप लोगों का तनाव दूर करने और मूड फ्रेश करने के लिए हमने अपने लेख में एक शेऱ और एक joke शामिल करना शुरू किया है। उम्मीद है कि आपको ये नया आईडिया पसंद आएगा।आप हमें अपने सुझाव भी jangbirsinghgoyat1000@gmail.com पर भेज सकते हैं
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