देवसहायम पिल्लई कौन हैं 2022? Who Is Dev Sahyam Pillai/What is Devasahayam Pillai miracles/ देवसहायम पिल्लई का जन्म कहाँ हुआ/कितने भारतीयों को मिली है ईसाई संत की उपाधि

किस चमत्कार की वजह से देवसहायम पिल्लई को मिली ईसाई संत की उपाधि ?

What is Devasahayam Pillai miracles

  • कौन है देवसहायम पिल्लई ? Who is DevSahayam Pillai
  • कहां से हैं देवसहायम पिल्लई ? which state belongs to Devsahayam
  • देवसहायम पिल्लई का जन्म कब हुआ ? when Devsahayam Pillai was born ?
  • देवसहायम पिल्लई की मृत्यु कब हुई ? When Devsahayam death ?
  • देवसहायम पिल्लई को ईसाई संत की उपाधि कब मिली ?
  • कितने भारतीयों को मिली है ईसाई संत की उपाधि ?
  • कैसे दी जाती है ईसाई धर्म में संत की उपाधि ?
  • क्या चमत्कार किया था देवसहायम पिल्लई ने ?
Dev Sahayam Pillai
Dev Sahayam Pillai

सभी धर्म-संप्रदायों में चमत्कार विशेष महत्व होता है। ऐसा नहीं है कि कम पढ़े-लिखे लोग ही बाबाओं व साधु-सतों द्वारा किए गए चमत्कारों से प्रभावित होते हैं, उच्च शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्ति भी पंडितों-ज्योतिषियों से शुभ-मुहूर्त पूछकर कार्य करते देखे जा सकते हैं।

चुनावों के दिनों में तो मीडिया में कई बार सुर्खियां बनती हैं कि फलां नेता फलां बाबा के डेरे में आशिर्वाद लेने गया।

.. .. .. खैर ,हमारा यहां किसी धर्म की आलोचना या सराहना करने का उद्देश्य नहीं है बल्कि आज हम आपको बता रहे हैं कि 15 मई 2022 को पोप फ्रांसिस ने वेटिकन एक आम भारतीय देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया है।
इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी आम भारतीय व्यक्ति के बारे में इस तरह की घोषणा की गई है। आपको बता दें कि मूल रूप से केरल के रहने वाले देवसहायम पिल्लई त्रावणकोर के राजा के दरबार में एक अधिकारी थे। उन्होंने 18 वीं शताब्दी में ईसाई धर्म ग्रहण किया था, और बाद में वो शहीद हो गए थे।

किस भारतीय को पोप फ्रांसिस ने किया है संत घोषित ?

देवसहायम पिल्लई को वेटिकन चर्च के पॉप फ्रांसिस ने संत की उपाधि दी है

ईसाई धर्म में भी चमत्कार का विशेष महत्व होता है, तभी तो 18वीं सदी में हिंदू धर्म त्यागकर ईसाई बनने वाले एक आम भारतीय नागरिक को संत की उपाधि आज 15 मई 2022 को दी गई है। उस भारतीय नागरिक का नाम है देवसहायम पिल्लई। वेटिकन में कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स ने इसकी घोषणा की है।

ईसाई बनने के बाद पिल्लई ने अपना नाम लेजारूस रख लिया था। लेजारूस का मतलब होता है देवसहायम यानी देवों की सहायता।

देवसहायम पिल्लई कौन हैं

Saint Dev Sahayam Pillai kaun hai

देवसहायम पिल्लई का जन्म केरल के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बताया जाता है कि उन्होंने हिंदू धर्म में जाति प्रथा का विरोध करते हुए कहा था कि सभी इंसान बराबर हंै। देवसहायम पिल्लई ने वर्ष 1745 में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था।

इस कारण उनका हिंदू धर्म के कथित उच्च वर्ग में उस समय खूब विरोध भी हुआ था। देवसहायम पिल्लई को वर्ष 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया। 14 जनवरी 1752 को उनको मार दिया गया, उनकी मौत के बाद उन्हें उनके चाहने वाले शहीद बताने लगे।

कहां से हैं देवसहायम पिल्लई ?

देवसहायम पिल्लई मूल रूप से केरल राज्य के रहने वाले थे। उनको हिंदू धर्म में फैली जाति-प्रथा से काफी नाराजगी थी। वे सभी धर्मां व जातियों के लोगों को एक समान मानते थे, जिसका उस समय के कथित हिंदू धर्मावलंबियों ने काफी विरोध किया व मुखालफत की।

परंतु वे अपने मिशन से नहीं डिगे जिसके कारण उनको अपनी जान तक गंवानी पड़ी।

देवसहायम पिल्लई को ईसाई संत की उपाधि कब मिली ?

पोप फ्रांसिस ने रविवार 15 मई 2022 को वेटिकन के सेंट पीटर बैसिलिका में संत की उपाधि प्रदान करने के लिए एक प्रार्थना सभा आयोजित की गई थी। इस सभा में भारत के केरल राज्य के देवसहायम पिल्लई को भी अन्य नौ लोगों के साथ संत घोषित किया।

पिल्लई के चमत्कारिक परोपकारी कार्यों को पोप फ्रांसिस ने वर्ष 2014 में मान्यता दे दी थी।

कितने भारतीयों को मिली है ईसाई संत की उपाधि ?

देवसहायम पिल्लई भारत के एकमात्र आम आदमी हैं जिनको पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि से विभूषित किया है। इनसे पहले भारत के किसी भी व्यक्ति को यह उपाधि नहीं मिली थी। इस उपाधि के लिए संत की उपाधि पाने वाले व्यक्ति को चमत्कारिक होना आवश्यक है।

अभी तक जितने लोगों को संत की उपाधि से नवाजा गया है उन सभी ने कोई न कोई चमत्कार अवश्य करके दिखाया है। हमारे देश में तो वैसे भी कहावत है कि – चमत्कार को नमस्कार है . . पोप फ्रांसिस द्वारा दी जाने वाली संत की उपाधि की योग्यता को देखकर कहा जा सकता है कि विज्ञान ने बेशक कितनी ही प्रगति कर ली हो भारत ही नहीं अपने आप को एडवांस देश कहने वाले भी चमत्कार से प्रभावित होते हैं।

कैसे दी जाती है ईसाई धर्म में संत की उपाधि ?

ईसाई धर्म में संत बनने के लिए चमत्कार क्यों जरूरी है? इस सवाल का जवाब तो संत की उपाधि देने वाली कमेटी या ईसाई धर्म के प्रमुख ही दे सकते हैं। हां, इतना अवश्य कहा जाता है कि पोप फ्रांसिस द्वारा तभी संत की उपाधि से सम्मानित किया जाता है जब व्यक्ति ने कोई न कोई बड़ा चमत्कार किया हो, जिसकी चर्चा समाज में हुई हो और उससे लाभ मिला हो।

Pop Fransis
Pop Fransis

क्या चमत्कार किया था देवसहायम पिल्लई ने ? What is Devasahayam Pillai miracles

माना जाता है कि देवसहायम पिल्लई की मौत के करीब 260 साल बाद उनके एक भक्त के साथ चमत्कार हुआ था जिस कारण उन्हें संत की उपाधि दी गई है। हम सभी जानते हैं कि आस्था के सवाल का जवाब हम और आप तर्क से नहीं खोज सकते हैं।

उनको संत की उपाधि देने के लिए चमत्कार की बात काफी पुरानी है, उस वक्त तक आधुनिक विज्ञान का जन्म तक नहीं हुआ था। लोगों की धारणा थी कि इंसान का जीवन किसी दूसरी दुनिया के प्रभाव से संचालित होता है।

क्या हुआ था चमत्कार ? Megic about Devasahayam Pillai

वेटिकन न्यूज के मुताबिक ईसाई धर्म के अनुसार कोई व्यक्ति तभी संत घोषित हो सकता है जब उसने कोई चमत्कार किया हो। जहां तक देवसहायम पिल्लई का मामला है तो आधिकारिक वेबसाइट कैथोलिकसैंट्स डॉट इंफो के मुताबिक उन्होंने एक मां के गर्भ में पल रहे भ्रूण में जान डाली थी।

बात 2013 की है। एक महिला के गर्भ में 24 सप्ताह का एक गर्भ था। भू्रण ने अचानक मां के गर्भ में हरकत करना बंद कर दिया। उसका दिल धडक़ना भी बंद हो गय।

वह महिला एक कैथोलिक थी और वह लेजारूस (पिल्लई) की परम भक्त थी। जब उसको पता चला कि भू्रण हरकत नहीं कर रहा है तो वह काफी डर गई और लेजारूस की प्रार्थना करने लगी। एक घंटे के भीतर ही महिला को अनुभव हुआ कि उसके पेट में उसके भ्रूण यानि बच्चे ने हरकत की है। इसके बाद उसका परीक्षण किया गया तो उसके दिल की धडक़न सामान्य चल रही थी।

कहा जाता है कि बाद में इस बच्चे का जन्म भी बिना किसी परेशानी के हुआ। देवसहायत पिल्लई को संत घोषित करने के लिए इसी घटना को चमत्कार माना गया है। इसके अलावा इस वेबसाइट पर इस घटना के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है.


हम सब जानते हैं कि चमत्कार एक ऐसी चीज होती है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। चमत्कार को न तो साबित किया जा सकता है और न ही इंसान के नियंत्रण में होता है। इसी कारण इसे सभी धर्मों में भगवान,ईश, अल्लाह से जोड़ा जाता है।
वर्ष 2012 में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पिल्लई की शहादत के संबंध में एक डिक्री जारी करने का रास्ता साफ किया था और उन्हें ‘आदरणीय’ की उपाधि दी गई थी।

वेटिकन न्यूज वेबसाइट के अनुसार, देवसहायम आज उन सात संतों में धन्य महसूस कर रहे होंगे। देवसहायम को संत घोषित करने का फैसला पिछले साल नवंबर में वेटिकन में संतों के सम्मेलन में की गई थी।

कैसा था देवसहायम पिल्लई का परिवार ? Dev Sahayam Family

केरल में जन्मे देवसहायम को वर्ष 1745 में एक ईसाई पुजारी द्वारा कैथोलिक धर्म में शामिल किया गया था। उनके पिता एक ब्राह्मण थे और उनकी मां कथित तौर पर नायर जाति से संबंधित थीं।

देवसहायम त्रावणकोर शासक महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में एक अधिकारी थे। उसी दौरान वह डच नौसेना कमांडर, कैप्टन यूस्टाचियस डी लैनॉय के प्रभाव में आए थे। रिपोर्टों से पता चलता है कि 1752 में ईसाई धर्म में शामिल होने के कारण शहीद कर दिया गया था।

इसके बाद उन्हें कोट्टार में सेंट फ्रंासिस जेवियर कैथेड्रल में मुख्य वेदी के सामने दफनाया गया था।

संत बनने के लिए पांच शर्तें कौन-सी हैं ?

समाज में जब भी लोग साधु या संत शब्द सुनते हैं, तो दिमाग में एक ऐसे व्यक्ति का खाका खिंच जाता है जो दुनियादारी से दूर है। कम कपड़ों में रहता है और उसको मायावी दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं है।

हमारे देश में तो ईमानदार , भोला-भाला व सच्चा आदमी हो तो उसको भी संत कह देते हैं। लेकिन इसका जो अंग्रेजी शब्द है, सेंट, वह संत से मिलता-जुलता जरूर लगता है परंतु उसके पीछे की कहानी और इस शब्द का मतलब बहुत ही अलग है।

भारत में मदर टेरेसा को भी संत कहा जाता है। लेकिन उनसे भी पहले भारत से एक महिला संत बन चुकी थीं। नाम था एना मुत्तथूपडथू। उस समय की त्रावणकोर रियासत में पैदा हुई थीं। जगह थी कोट्टायम। संत बनने के बाद उनका नाम सेंट एल्फोंज़ा हुआ। वर्ष 2008 में इन्हें संत की उपाधि मिली।

ईसाई धर्म में सेंटहुड या संत की उपाधि पाना काफी मुश्किल है। इसकी एक लंबी प्रक्रिया होती है जिससे गुजरना पड़ता है। ईसाई धर्म में धारणा ये है कि मरने के बाद सेंट स्वर्ग में चले जाते हैं, और भगवान का काम वहां से करते हैं।

ईसाई धर्म में संत बनने के लिए पहली शर्त

इसमें क्रिश्चियन यानि ईसाई बनने की शपथ ली जाती है और पानी में डुबकी लगाई जाती है। वह पानी होली वाटर कहा जाता है। संत बनने के लिए सबसे पहले तो जेम्स के लोकल बिशप को खबर की जाएगी और रिकमेन्डेशन भेजा जाएगा।

लोकल बिशप वह कहलाता है जो डायोसीज . . . .मतलब एक बिशप के नेतृत्व में आने वाला क्षेत्र का मुखिया होता है। वह जेम्स के जीवन के बारे में जानकारी एकत्रित करेगा और ऐसे लोगों से सुबूत लेगा जिन्होंने उसे जीवित देखा है। उसके काम देखे हैं। बिशप द्वारा ही जेम्स का नाम रेकमेंड किया जाएगा।

इसके बाद वैटिकन, कैथलिक ईसाई धर्म की सबसे महत्वपूर्ण जगह है, को रेकमेंडेशन भेजा जाता है। उस जगह को कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज़ ऑफ़ सेंट्स कहा जाता है। यह भी बताते हैं कि इसमें एक शर्त है जिसके लिए भी सेंट की पदवी के लिए आवेदन किया जाता है, उसकी मौत को कम से कम पांच साल पूरे हो चुके हों।

अपवाद यहां भी हो सकते हैं, परंतु नियम यही है।

सर्वंट ऑफ गॉड – परमात्मा का सेवक

आवेदन के बाद अब दो चीज़ें होंगी, या तो एप्लीकेशन रिजेक्ट हो जाएगी. या एक्सेप्ट हो जाएगी। एक्सेपप्ट हो गई तो कांग्रिगेशन अपनी जांच-पड़ताल करेगा। अगर यह पड़ाव भी पार कर लिया तो आवेदनकर्ता यानि जेम्स को सर्वेंट ऑफ गॉड यानी भगवान का सेवक कहा जाएगा।

वेनेरेबल होने की स्वीकृति

जांच-पड़ताल के बाद अब अगर कांग्रिगेशन ये लगता है कि जेम्स ने वास्तव में बहुत धार्मिक, निस्वार्थ जीवन जिया है तो वे अपनी ओर से आगे स्वीकृति देते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ माना जाता है कि उसने धरती पर रहते हुए भी भगवान के कामों को आगे बढ़ाया, इसके बाद जेम्स वेनेरेबल अथवा पूजित कहलाने लगेंगे।

ब्लेस्ड यानी ‘धन्य’ हो जाना

संत की उपाधि की प्रक्रिया यहीं खत्म नहीं हो जाती है, इसमें जेम्स को अभी और भी सोपान चढऩे पड़ेंगे। फिर ये देखा जाता है कि मौत के बाद उस व्यक्ति के नाम पर कोई चमत्कार हुआ है या नहीं। अगर नहीं हुआ है तो आवेदन सीध रिजेक्ट हो जाता है, अगर हुआ है तो कम से कम दो चमत्कार आवश्यक हैं। तत्पश्चात जिक्र आता है कि ये चमत्कार कैसे होने चाहिएं ?


किसी बीमार व्यक्ति का अचानक ठीक हो जाना, ये ठीक होना भी तुरंत होना चाहिए, परमानेंट होना चाहिए। कमाल की बात है कि इसमें पहले डॉक्टर्स चेक करेंगे, फिर धर्म के ज्ञानी इसकी तसदीक करेंगे, और आखिर में पोप अपनी स्वीकृति देंगे।

इस सारे प्रोसेस के बाद ही जेम्स को ब्लेस्ड यानि धन्य की पदवी मिल जाती है। ब्लेस्ड होने की पूरे प्रोसेस को बीटिफिकेशन भी कहते हैं। इसके बाद जेम्स को एक सीमित जगह पर या क्षेत्र में पूज तो सकते हैं परंतु संत अभी भी नहीं कहा जाएगा।

एक और चमत्कार- संत बनने की तरफ आखिरी कदम

संत बनने के आखिर वाला पड़ाव या जांच-पड़ताल भी सहज नहीं होती है। इसमें एक और चमत्कार का होना जरूरी है। इस चमत्कार की जांच भी वैसे ही होगी जैसे पिछले पूरे प्रोसेस में हुई थी। जब यह स्टेप भी पूरा हो जाएगा तो पोप फ्रांसिस जेम्स को सेंट यानि संत घोषित कर देंगे।

फिर कैननाइजेशन पूरा होता है। यह भी कहा जाता है कि अगर जेम्स ईसाई धर्म के लिए शहीद हुए होते हैं तो उनको केवल एक ही चमत्कार में सेंट की उपाधि दे दी जाती है। बताया जाता है कि अभी तक कैथलिक चर्च ने कम से कम 3000 लोगों को संत की उपाधि दी है।

संत की उपाधि देने की कहानी कब शुरू हुई ?

खोजबीन से पता चला है कि वर्ष 1234 तक संत की उपाधि देने की कोई तयशुदा प्रक्रिया नहीं थी। आमतौर पर धर्म युद्ध में लड़ते हुए शहीद होने वाले और दैवीय माने जाने वाले लोगों की मृत्यु के बाद चर्च उन्हें संत की उपाधि दे दिया करता था, परंतु इसमें कई बार किवदंती के किरदारों को भी ये उपाधि मिल जाती थी।


एक बार स्वीडन में एक भिक्षु ने शराब पीकर किसी से झगड़ा किया और उसमें उसकी मौत हो गई। गजब की बात यह है कि वहां के लोकल चर्च ने उसे संत की उपाधि इसलिए दे दी कि धार्मिक व्यक्ति था, मर गया। धर्म के लिए मरा होगा। कहा जाता है कि कुछ ऐसे ही मामले विवादित होने पर वेटिकन ने संत की उपाधि देने के लिए कुछ कायदे-कानून बनाए।

FAQ : –

देवसहायम पिल्लई का जन्म कहाँ हुआ?

देवसहायम पिल्लई का जन्म केरल के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदू धर्म में जाति प्रथा का विरोध करते हुए वर्ष 1745 में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था।

भारत में किस-किस को मिली ह संत की उपाधि ?

देवसहायम पिल्लई भारत के एकमात्र आम आदमी हैं जिनको पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि से विभूषित किया है

क्या कोई चमत्कार किया था देवसहायम पिल्लई ने ?

जी हाँ, मान्यता यही है कि एक महिला को जब पता चला कि भू्रण हरकत नहीं कर रहा है तो वह काफी डर गई और लेजारूस की प्रार्थना करने लगी।

एक घंटे के भीतर ही महिला को अनुभव हुआ कि उसके पेट में उसके भ्रूण यानि बच्चे ने हरकत की है। देवसहायत पिल्लई को संत घोषित करने के लिए इसी घटना को चमत्कार माना गया है।

कब तक संत की उपाधि देने का प्रोसेस नहीं था ?

खोजबीन से पता चला है कि वर्ष 1234 तक संत की उपाधि देने की कोई तयशुदा प्रक्रिया नहीं थी।

What’s name of movie or biopic of Devsahayam Pillai ?

जी, हाँ। संत देवसहायम पिल्लई के जीवन पर एक एनिमेटेड बायोपिक बनाई गई है जिसका का शीर्षक ‘St. Devasahayam, an icon of persecuted Christians’. फिल्म के निर्माता कल्याण मीडिया सेल हैं .

उन्होंने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य लोगों को देवसहायम के विश्वास को समझने के लिए प्रेरित करना है। यह बायोपिक अंग्रेजी, हिंदी, मलयालम और तमिल में है।

What is Devasahayam Pillai history in English ?

जी , हाँ देवसहायम पिल्लई की English में History बहुत ही अच्छे ढंग से विकिपीडिया पर उपलब्ध है, जिसका लिंक हम आपको यहाँ दे रहे हैं

What was the Devasahayam Pillai wife name ?

देवसहायम पिल्लई की पत्नी का नाम जन्म के समय नीलकंद पिल्लई था। बाद में नाम बदलकर “लज़ार” कर दिया गया था, हालाँकि उन्हें तमिल और मलयालम अनुवाद देवसहायम (जिसका अर्थ है भगवान की मदद) से अधिक व्यापक रूप से जाना जाता है।

पिल्लई की शादी इस समय तक त्रावणकोर राज्य के कुंचु वीडू, एलंथविलाई, माईकोडी की भार्गवी अम्मल से हुई थी।

Where is Devasahayam Pillai tomb

कन्याकुमारी जिले के कट्टाडिमलाई में 14 जनवरी 1752 को देवसहायम पिल्लई की मृत्यु हो गई थी। बाद में पिल्लई के शरीर को क्षेत्र के कुछ लोगों ने बरामद किया और नागरकोइल में कोट्टार में चर्च ले जाया गया।

उनके नश्वर अवशेषों को सेंट जेवियर्स चर्च, कोट्टार, नागरकोइल के अंदर वेदी के पास दफनाया गया था, जो अब डायोकेसन कैथेड्रल है।

What is Devasahayam Pillai history in Malayalam ?

जी हाँ , मलयालम भाषा में भी संत देव सहायम पिल्लई की Historyon amezon लिंक पर क्लीक करके खरीद सकते हैं

निष्कर्ष :

हम किसी भी धर्म की मान्यता या आस्था की न तो आलोचना करते हैं और न हीं समर्थन। इस लेख का मकसद पोप फ्रांसिस द्वारा भारतीय मूल के देवसहायम पिल्लई को संत की उपाधि देने की जानकारी के साथ-साथ ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं व आस्थाओं के बारे में बताना था।

अगर आपको इसमें कुछ गलत तथ्य लगते हैं तो सही करने के लिए सुझाव दे सकते हैं। हमारा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है।

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